Saturday, May 13, 2017

मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ?

मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ?

मैं शायर हूँ, मैं कायर हूँ,
सत्यान्वेषी, सत्यवादी, या झूठा और liar हूँ

मैं गगन हूँ, मैं मगन हूँ,
निर्वस्त्र हूँ, में नग्न हूँ

मैं लज्जा हूँ, समाज हूँ
दुशासन हूँ, द्रौपदी हूँ, गोवेर्धन गिरिराज हूँ

मैं सृष्टि हूँ, मैं वायु हूँ,
मैं रावण और जटायु हूँ

मैं राम भी, मैं बाण भी,
अग्नि भी, परीक्षा भी, प्रमाण भी

मैं कृष्णा भी, मैं गोपी भी,
मैं पगड़ी भी, मैं टोपी भी,

मैं साधु हूँ, मैं संत भी,
अंत भी , अनन्त भी

मैं ढोंगी भी, चोर भी,
चांद भी , चकोर भी,

मैं कौन हूँ?

मैं नीच कोई विचार हूँ
हीन भावना का शिकार हुँ
मृत्यु शैया पे पड़ा हुआ जैसे कोई बीमार हुँ
अपने ही बंधनो में बंधा हुआ लाचार हूँ
चुनावों में लगने वाली सहिंता आचार हूँ
लाखों की इस दुनिया में  जैसे चंद हज़ार हूँ
Malls की दुनिया में, मैं जैसे बुध बाजार हूँ

मैं कौन हूँ?

Tuesday, May 9, 2017

10 reasons why today's Girl don't need a Bahubali.


10. It is not Chivalry, it is chauvinism.

Rest - Girls will tell you why and what they want, they don't need a man writing on behalf of them.

Thursday, February 23, 2017

मुझे कुछ नहीं पता

मैं जानता हूँ कि मेरी हिंदी अच्छी नही है , और रविश कुमार जितनी तो बिलकुल भी नही है, लेकिन इस लेख को हिंदी में लिखना बहुत जरुरी था।

कारण ये है कि मैं दिल्ली में रहता हूँ , असली भारत से कोसो दूर, क्योंकि असली भारत तो गाँव में बसता है ना, और इसपर मैं एक पुरुष भी हु, मध्यम वर्गीय परिवार से आता हूं और उस पर कम्बख्त जनरल केटेगरी से आता हूँ।

मेरा असली भारत से रूबरू रविश कुमार ने ही कराया, जहाँ एक और सभी इंग्लिश चैनल हवाई और बॉलीवुड की ही बातें कर रहे थे और  हिंदी न्यूज़ 'चैन से सोना है तो जाग जाओ' और सास बहू और साज़िश की ही बात कर रहे थे,  वहीँ रविश कुमार हिंदी न्यूज़ जगत में उम्मीद की किरण बन कर आये।

नाम में दम, आवाज़ में दम, और हिस्टरी , पॉलिटिक्स की अनूठी नॉलेज।

आपकी कवरेज हो या डिबेट , आपके व्यंग, सरकस्म और satire को देख के सभी लोग मोहित हो जाते हैं, अब बात करते हैं अन्याय के खिलाफ, अमीर का गरीब पे, ऊँची जाती का नीची जाति पे, हिन्दुओ का मुस्लिम पे, अच्छा लगा कि कोई तो सच की बात करता है, लेकिन फिर धीरे धीरे पैटर्न दिखने लगा, आपका 'कौन जात हो?' तो अब विश्व प्रसिद्ध है।

आपकी हर मुद्दे मैं दलित विरोधी, गरीब विरोधी, माइनॉरिटी विरोधी गतिविधियों की बात ढूंढने की क्षमता का क्या कहना, बीजेपी की गवर्मेंट से आपने पूरे 60 सालो का हिसाब मांग डाला, स्क्रीन भी काली की, लेकिन साहब असली स्क्रीन तो अब काली हुई है, जब सुना के आप तो पांडे जी निकले, वो भी ऐसे वैसे नही, कांग्रेस वाले बृजेश पाण्डेय के भाई, अरे भाई वो भी ऐसे वैसे नही, जिनपे बलात्कार और मानव तस्करी का आरोप है, बिहार में तो सरकार और पुलिस भी मोदी जी की नही है, इसका आरोप भी उनपे नहीं लगा पाओगे आप।

आज वही मीडिया जो बुझती चिंगारी को भी आग बना देता है, आपके भाई के बारे में चुप है, आप भी चुप हो।
लेकिन मैं भी क्या कहने लगा, ये कोई पहली बार तो हो नही रहा।

वही मीडिया जिसको कन्हिया कुमार में लीडर दिखता है और ABVP मैं गुंडे,
वही मिडिया जिसको भंसाली को पड़े थप्पड़ में असहिष्णुता दिखती है, और हिन्दू आतंकवाद दिखता है, उसको बम विस्फोट में मज़हब नही दिखता।

अभी तारेक फ़तेह की जश्ने रेख्ता में हुई पिटाई तो हमारी गंगा जमुनी तहज़ीब का एक उदहारण था, कोई इनटॉलेरेंस नही।

कश्मीर में मरने वाले फ़ौजी लालची हैं, बुरे  है, और पत्थर फेंकने वाले मजबूर।

कश्मीरी पंडितों से बुरा तो कोई हुआ ही नही।

खैर में किसी को क्या कहूँ, मैं तो दिल्ली शहर में रहने वाला माध्यम वर्गीय जनरल केटेगरी का पुरुष हूं, मुझे कुछ नही पता।

रवि 'कुमार' खुराना

Sunday, February 19, 2017

वज़ह

जहां जाने की कोई वज़ह ना हो, वहाँ जाने का लुत्फ़ कुछ और ही है

अपना दिल

मैंने दिल अपने से ही आशिक़ी कर ली
ना दिल लेना पड़ा, और ना देना पड़ा
ना बहा अश्क़ एक भी इन आँखों से
जुदाई का दर्द भी ना  सहना पड़ा

रवि खुराना

Sunday, September 25, 2016

गुरदास मान

गुरदास  मान 

सार लगते  जैसे तुम  चारो वेद के,
कुंजी हो जैसे छुपे   किसी किसी अनसुने  भेद के,
लाजवाब हो , जवाब ऐसे देते हो,
सातो रंग  हो तुम जैसे सफ़ेद के,

इश्क़ होता होता है क्या मैं नही जानता 
देखता हूँ तुम्हे कुछ और नही मांगता 

ख़ुसरो निज़ाम सा रिश्ता है कुछ अपना 
खत्म ना होगा जा के भी कब्र की सेज पे 

Ravi Khurana

Tuesday, August 16, 2016

ज़िंदगी

ज़िन्दगी जीने के जो चार तरीके हैं,
उनमे से दो चार हमने भी सीखें हैं

लोग कहते हैं हो जाओ तुम किसी के अब,
मुस्कुरा कर ये हम उनसे कहते हैं,
जो हमारा है, बस हम उसी के हैं

रवि खुराना

कान्हा

नटखट कान्हा, मुझे बताना; कब दौड़े-दौड़े आओगे.
शाम सलोनी भोली सूरत, कब हमको दिखलाओगे.
इतने छोटे, भोले-भाले, क्या-क्या तुम  कर पाओगे.
प्रेम और मोह का ये अंतर, कैसे इस जग को समझाओगे.
नटखट कान्हा, मुझे बताना; कब दौड़े-दौड़े आओगे.

-Ravi Khurana

Refugee

आज 14 अगस्त है यानी हमारे दुश्मन ,  प्रतिद्वन्दी , पडोसी देश पाकिस्तान का जन्म दिवस (जिसे वो ना जाने क्यूं  स्वन्त्रता दिवस के रूप में मनाते हैं, जबकि स्वन्त्र तो वो ही हो सकता है जिसका कोई अस्तित्व हो, और हम सब लोग इस बात से भली भांति वाकिफ़ हैं कि 14 अगस्त 1947 तक तो पाकिस्तान का कोई अस्तित्व था ही नही).

खैर, मेरा ये लेख पाकिस्तान को कोसने के लिए नही है, इसके लिए हमारे व्हाट्सएप्प वारियर्स ही काफी हैं।

दरअसल बचपन से ही मुझे ये दिन, 14 व् 15 अगस्त,  बहुत उत्साहित करते है.

जहाँ सभी लोग इन दिनों में टेम्पररी देश भक्ति से ओत प्रोत होते हैं, वही मेरा दिल कुछ सवालों की तलाश में जुड़ जाता है।

विभाजन वो कटु सचाई है जिसे हम चाहते हुए भी नही भुला सकते, लेकिन हमारा ये समाज इसे भुलाने पे आमादा है

मेरे पूर्वज गुजराँवाला के एक गाँव अम्बराव* से थे, सुना है बहुत धनि परिवार था , मेरे दादाजी एक मात्र संतान थे, तथा हमारी बहुत बढ़ी दूध की डेरी थी.

मैं नही जानता अमीरी के किस्से किस हद तक ठीक है पर सुना हैं आज़ादी के कुछ साल बाद तक हमने अपनी सोने चांदी की कटलरी बेच के गुज़ारा किया।

पाजामे के नाड़ो में सोने की फुमन्न होने की बात भी मुझे बचपन से ही हास्याद्पाद तथा अजीब लगती है।

खेर, वापिस विभाजन पर आते हैं ।

ज़रा सोचिए, जिस भूमि से आप सदियों से जुड़े हो, वो आप से सिर्फ इसलिए छिन जाए क्योंकि कुछ लोगो में राजनितिक मतभेद हो, जिसके चलते एक नया देश बन लिया जाए, यही नही आपको अपने जान माल, इज़्ज़त आबरू को भी बचा के रातो रात भागना पड़े, आप नही जानते कि आपके भाई बहन, माता पिता , सगे संबधि कहा हैं, जीवित हैं भी या नही,  आपको बस भागना है, कहाँ? हिन्दोस्तां की और? तो हम कहाँ हैं? ये पाकिस्तान हो गया है।

आप एक कैम्प में है, जिसे रिफ्यूजी केम्प कहा जा रहा है. अपने ही देश में रिफ्यूजी कहलाये जाने की ठेस को जानते हैं आप? खासकर जब  ये शब्द आपसे जुड़ सा जाए.

ये रिफ्यूजी क्योंकि  एक ऊँची जाति से सम्बन्ध रखते हैं , भारत सरकार ने इनके लिए ना कभी सोचा, और ना ही इन्होंने कभी मांग की. फलते फूलते समुदाय से दिल्ली की गलियों में आइस क्रीम बेचने तक।

मैंने ये किसी मांग या विद्रोह के लिए नही लिखा, बस याद कराना चाहता था कि हर साल आज़ादी के साथ बापू की कुर्बानी के साथ उन गुमनाम आवाज़ों को भी याद कर लो जो इस आज़ादी के साथ ही बर्बाद हुए थे।

जय हिंद!

रवि खुराना

Batwara

Dukh taan hunn Ethe v ni koi, par sunya othe Di gal kujh horr si.

Daadi Di akhiyon dekhya hai main, sohna badha Lahore si..

Chit krda kadde main v jaavan jis vehde ch Mera parivar si vasda

Par hukumta ne enni nafrat gholi, visa othe da ni lgda...

Ravi Khurana