Sunday, September 25, 2016

गुरदास मान

गुरदास  मान 

सार लगते  जैसे तुम  चारो वेद के,
कुंजी हो जैसे छुपे   किसी किसी अनसुने  भेद के,
लाजवाब हो , जवाब ऐसे देते हो,
सातो रंग  हो तुम जैसे सफ़ेद के,

इश्क़ होता होता है क्या मैं नही जानता 
देखता हूँ तुम्हे कुछ और नही मांगता 

ख़ुसरो निज़ाम सा रिश्ता है कुछ अपना 
खत्म ना होगा जा के भी कब्र की सेज पे 

Ravi Khurana

Tuesday, August 16, 2016

ज़िंदगी

ज़िन्दगी जीने के जो चार तरीके हैं,
उनमे से दो चार हमने भी सीखें हैं

लोग कहते हैं हो जाओ तुम किसी के अब,
मुस्कुरा कर ये हम उनसे कहते हैं,
जो हमारा है, बस हम उसी के हैं

रवि खुराना

कान्हा

नटखट कान्हा, मुझे बताना; कब दौड़े-दौड़े आओगे.
शाम सलोनी भोली सूरत, कब हमको दिखलाओगे.
इतने छोटे, भोले-भाले, क्या-क्या तुम  कर पाओगे.
प्रेम और मोह का ये अंतर, कैसे इस जग को समझाओगे.
नटखट कान्हा, मुझे बताना; कब दौड़े-दौड़े आओगे.

-Ravi Khurana

Refugee

आज 14 अगस्त है यानी हमारे दुश्मन ,  प्रतिद्वन्दी , पडोसी देश पाकिस्तान का जन्म दिवस (जिसे वो ना जाने क्यूं  स्वन्त्रता दिवस के रूप में मनाते हैं, जबकि स्वन्त्र तो वो ही हो सकता है जिसका कोई अस्तित्व हो, और हम सब लोग इस बात से भली भांति वाकिफ़ हैं कि 14 अगस्त 1947 तक तो पाकिस्तान का कोई अस्तित्व था ही नही).

खैर, मेरा ये लेख पाकिस्तान को कोसने के लिए नही है, इसके लिए हमारे व्हाट्सएप्प वारियर्स ही काफी हैं।

दरअसल बचपन से ही मुझे ये दिन, 14 व् 15 अगस्त,  बहुत उत्साहित करते है.

जहाँ सभी लोग इन दिनों में टेम्पररी देश भक्ति से ओत प्रोत होते हैं, वही मेरा दिल कुछ सवालों की तलाश में जुड़ जाता है।

विभाजन वो कटु सचाई है जिसे हम चाहते हुए भी नही भुला सकते, लेकिन हमारा ये समाज इसे भुलाने पे आमादा है

मेरे पूर्वज गुजराँवाला के एक गाँव अम्बराव* से थे, सुना है बहुत धनि परिवार था , मेरे दादाजी एक मात्र संतान थे, तथा हमारी बहुत बढ़ी दूध की डेरी थी.

मैं नही जानता अमीरी के किस्से किस हद तक ठीक है पर सुना हैं आज़ादी के कुछ साल बाद तक हमने अपनी सोने चांदी की कटलरी बेच के गुज़ारा किया।

पाजामे के नाड़ो में सोने की फुमन्न होने की बात भी मुझे बचपन से ही हास्याद्पाद तथा अजीब लगती है।

खेर, वापिस विभाजन पर आते हैं ।

ज़रा सोचिए, जिस भूमि से आप सदियों से जुड़े हो, वो आप से सिर्फ इसलिए छिन जाए क्योंकि कुछ लोगो में राजनितिक मतभेद हो, जिसके चलते एक नया देश बन लिया जाए, यही नही आपको अपने जान माल, इज़्ज़त आबरू को भी बचा के रातो रात भागना पड़े, आप नही जानते कि आपके भाई बहन, माता पिता , सगे संबधि कहा हैं, जीवित हैं भी या नही,  आपको बस भागना है, कहाँ? हिन्दोस्तां की और? तो हम कहाँ हैं? ये पाकिस्तान हो गया है।

आप एक कैम्प में है, जिसे रिफ्यूजी केम्प कहा जा रहा है. अपने ही देश में रिफ्यूजी कहलाये जाने की ठेस को जानते हैं आप? खासकर जब  ये शब्द आपसे जुड़ सा जाए.

ये रिफ्यूजी क्योंकि  एक ऊँची जाति से सम्बन्ध रखते हैं , भारत सरकार ने इनके लिए ना कभी सोचा, और ना ही इन्होंने कभी मांग की. फलते फूलते समुदाय से दिल्ली की गलियों में आइस क्रीम बेचने तक।

मैंने ये किसी मांग या विद्रोह के लिए नही लिखा, बस याद कराना चाहता था कि हर साल आज़ादी के साथ बापू की कुर्बानी के साथ उन गुमनाम आवाज़ों को भी याद कर लो जो इस आज़ादी के साथ ही बर्बाद हुए थे।

जय हिंद!

रवि खुराना

Batwara

Dukh taan hunn Ethe v ni koi, par sunya othe Di gal kujh horr si.

Daadi Di akhiyon dekhya hai main, sohna badha Lahore si..

Chit krda kadde main v jaavan jis vehde ch Mera parivar si vasda

Par hukumta ne enni nafrat gholi, visa othe da ni lgda...

Ravi Khurana