Sunday, September 25, 2016

गुरदास मान

गुरदास  मान 

सार लगते  जैसे तुम  चारो वेद के,
कुंजी हो जैसे छुपे   किसी किसी अनसुने  भेद के,
लाजवाब हो , जवाब ऐसे देते हो,
सातो रंग  हो तुम जैसे सफ़ेद के,

इश्क़ होता होता है क्या मैं नही जानता 
देखता हूँ तुम्हे कुछ और नही मांगता 

ख़ुसरो निज़ाम सा रिश्ता है कुछ अपना 
खत्म ना होगा जा के भी कब्र की सेज पे 

Ravi Khurana