Saturday, April 7, 2012

फिर

छोटा सा, नादान सा, ना जाने कहां से आया था।

मुस्कुराहट बिखेरता, हंसता खेलता, जाने क्या खुशियां लाया था।

देर रात तक साथ था मेरे, ऐसा वो इक साया था।

खूब हसें हम और खूब थे खेले, सब कुछ उसे बताया था।

जा अब घर जा पगले देर हुई है, मैंने उसे समझाया था।

आंख खुली जब आज सवेरे, मैंने यही पाया था।

लगता है कमबख्त, फिर तेरा सपना आया था।

-Ravi Khurana

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