Tuesday, April 30, 2013

Main (मैं)



मैं क्यों मारा जाता हूँ, बस मैं क्यों मारा जाता हूँ!

रात को थक हार कर सोते हुए,
सुबह walk पे जाने के सपने सजाता हूँ !

सुबह जब नींद खुलती है,
तो खुद को office के लिए late पाता हूँ !

भाग दौड़ के, नाश्ता skip कर,
घर से भागा जाता हूँ !

भगवन से भी setting है,
मंदिर, गुरुद्वारों को बाहर से शीश नवाता हूँ !

ऑफिस पहुँच के lunch से पहले,
Boss की दांट मैं खाता हूँ !

Job बदलूँगा , ये करूँगा, वो करूँगा,
फिर ये सब बढ्बदाता हूँ !

नयी job में कितना मांगू, कितना मिलेगा,
यही हिसाब लगाता हूँ!

इस महंगाई में घर कैसे चलेगा,
बस ये ही सोचे जाता हूँ!

कार ले लू या नहीं,इसी कशमकश में,
मैं कितने साल बिताता हूँ !

किसी weekend पे movie देख के,
कितना मैं इतराता हूँ!

SALE के चक्कर में जब फसता हूँ,
Credit card  से चुकाता  हूँ!

पर, 

कभी दंगो में, कभी firing में,

घटना में, दुर्घटना में,

कभी  blast में, कभी  protest में,

कभी  peace में, कभी  rest में,

कभी  दो कारों की टककर में,

कभी  कुछ लुटेरो  के चक्कर में,

कभी घर अपने अकेले में ,

कभी  बढे किसी मेले में,

बस में ही क्यों मारा जाता हूँ?

Ravi Khurana

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