Thursday, November 29, 2012

ISHQ HO GYA


गहरी हँसी  में गिर सा गया, कातिल अदाओं से घिर सा गया

दुनिया सिमट गयी होंठो पे उसके और

बोलती खामोशियो का गीला निशां , बारिश की बूंदों  से मिट सा गया

बादशाहों की फकीरी देखी दर उसके,

और देखा जब आसमां  भी झुक  सा गया

मिलने लगी जब आँखों से आँखें

देख उन्हें ऐसा लगा जैसे साँसों का कारवां ही रुक सा गया

लोग हसने लगे हमें देख के, हम उन्हें देख के मुस्कुराने लगे

सब परेशां थे दीवानगी से, जो कभी पास थे दूर जाने लगे

थे खाली हाथ हम  पहले से , फिर भी कोई जैसे  ठग सा गया

ना  प्यार मिला, ना  यार मिला, इश्क का रोग भी लग सा गया

रवि खुराना

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